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अंधेरों का मौसम बदलता नहीं है ।
मेरा चाँद घर से निकलता नहीं है ।।
जरा उनसे पूछो उजालों की कीमत ।
दिया जिनकी बस्ती में जलता नहीं है।।
लुटेगा वो आशिक यहां दिन दहाड़े ।
मुहब्बत पे अब जोर चलता नहीं है।।
वो है चांदनी रात का मुन्तजिर अब ।
निगोड़ा ये सूरज भी ढलता नहीं है ।।
नज़र लग गई क्या ज़माने की उसको ।
कबूतर वो छत पर टहलता नहीं है ।।
तबस्सुम के बदले वो जां मांग बैठा ।
जिसे लोग कहते हैं छलता नहीं है ।।
तुझे तज्रिबा है तो आ मैकदे में ।
कदम जाम पी कर सँभलता नहीं है ।।
महकते गुलों ने किया है इशारा ।
यूँ ही कोई भौरा मचलता नहीं है ।।
खुदा भी अजब है अजब उसकी फ़ितरत ।
किया मिन्नतें पर पिघलता नहीं है ।।
लगीं ठोकरें तो वो हँस करके बोला ।
मुकद्दर में जो है वो टलता नही है ।।
बड़ी इल्तिजा है कि तू घर पे आये ।
खतों से तो मन अब बहलता नहीं है ।।
है बर्दास्त सबको सितम की ज़लालत ।
लहू अब किसी का उबलता नहीं है ।।
न कर आजमाइस पकड़ने की उसको ।
कफ़स में परिंदा जो पलता नही है ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
अंधेरों का मौसम बदलता नहीं है ।
मेरा चाँद घर से निकलता नहीं है ।।
जरा उनसे पूछो उजालों की कीमत ।
दिया जिनकी बस्ती में जलता नहीं है।।
लुटेगा वो आशिक यहां दिन दहाड़े ।
मुहब्बत पे अब जोर चलता नहीं है।।
वो है चांदनी रात का मुन्तजिर अब ।
निगोड़ा ये सूरज भी ढलता नहीं है ।।
नज़र लग गई क्या ज़माने की उसको ।
कबूतर वो छत पर टहलता नहीं है ।।
तबस्सुम के बदले वो जां मांग बैठा ।
जिसे लोग कहते हैं छलता नहीं है ।।
तुझे तज्रिबा है तो आ मैकदे में ।
कदम जाम पी कर सँभलता नहीं है ।।
महकते गुलों ने किया है इशारा ।
यूँ ही कोई भौरा मचलता नहीं है ।।
खुदा भी अजब है अजब उसकी फ़ितरत ।
किया मिन्नतें पर पिघलता नहीं है ।।
लगीं ठोकरें तो वो हँस करके बोला ।
मुकद्दर में जो है वो टलता नही है ।।
बड़ी इल्तिजा है कि तू घर पे आये ।
खतों से तो मन अब बहलता नहीं है ।।
है बर्दास्त सबको सितम की ज़लालत ।
लहू अब किसी का उबलता नहीं है ।।
न कर आजमाइस पकड़ने की उसको ।
कफ़स में परिंदा जो पलता नही है ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
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