1212 1122 1212 22
हर एक शख्स को मतलब है बस ख़ज़ाने से ।
गिला करूँ मैं कहाँ तक यहां ज़माने से ।।
कलेजा अम्नो सुकूँ का निकाल लेंगे वो ।
उन्हें है वक्त कहाँ बस्तियां जलाने से ।।
न पूछ हमसे अभी जिंदगी के अफसाने ।
कटी है उम्र यहां सिसकियां दबाने से ।
मैं अपने दर्द को बेशक़ छुपा के रक्खूँगा ।
मिले जो चैन तुझे मेरे मुस्कुराने से ।।
हमारे हक़ पे न हमला करो यहां साहब ।
चलेगा मुल्क़ नहीं इस तरह चलाने से ।।
वो रूठते हैं तो कुछ और आना जाना रख ।
बनेग़ा यार कोई सिलसिले बनाने से ।।
बड़ें यकीन से कहकर गया है फिर कोई ।
खुदा मिलेंगे तुझे दूरियां मिटाने से ।।
भरम बनाए रखें दोस्ती का दुनिया में ।
ये रिश्ते टूट न जाएं यूँ आजमाने से ।।
उसे पता है हवाओं का रुख किधर है अब ।
बुझेगी आग यहां आग फिर लगाने से ।।
ये आंख कुछ तो बताती हैआपकी फ़ितरत ।
छुपा है दर्द कहाँ आपके छुपाने से ।।
अजीब दौर है इंशानियत नहीं दिखती ।
ज़मीर बेच रहे लोग फ़िर बहाने से ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
हर एक शख्स को मतलब है बस ख़ज़ाने से ।
गिला करूँ मैं कहाँ तक यहां ज़माने से ।।
कलेजा अम्नो सुकूँ का निकाल लेंगे वो ।
उन्हें है वक्त कहाँ बस्तियां जलाने से ।।
न पूछ हमसे अभी जिंदगी के अफसाने ।
कटी है उम्र यहां सिसकियां दबाने से ।
मैं अपने दर्द को बेशक़ छुपा के रक्खूँगा ।
मिले जो चैन तुझे मेरे मुस्कुराने से ।।
हमारे हक़ पे न हमला करो यहां साहब ।
चलेगा मुल्क़ नहीं इस तरह चलाने से ।।
वो रूठते हैं तो कुछ और आना जाना रख ।
बनेग़ा यार कोई सिलसिले बनाने से ।।
बड़ें यकीन से कहकर गया है फिर कोई ।
खुदा मिलेंगे तुझे दूरियां मिटाने से ।।
भरम बनाए रखें दोस्ती का दुनिया में ।
ये रिश्ते टूट न जाएं यूँ आजमाने से ।।
उसे पता है हवाओं का रुख किधर है अब ।
बुझेगी आग यहां आग फिर लगाने से ।।
ये आंख कुछ तो बताती हैआपकी फ़ितरत ।
छुपा है दर्द कहाँ आपके छुपाने से ।।
अजीब दौर है इंशानियत नहीं दिखती ।
ज़मीर बेच रहे लोग फ़िर बहाने से ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
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