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अभी तक आना जाना चल रहा है ।
कोई रिश्ता पुराना चल रहा है ।।
सुना है शह्र की चर्चा में आगे ।
तुम्हारा ही फ़साना चल रहा है ।।
इधर दिल पर लगी है चोट गहरी ।
उधर तो मुस्कुराना चल रहा है ।।
कहीं तरसी जमीं है आब के बिन ।
कहीं मौसम सुहाना चल रहा है ।।
तुझे बख़्शा खुदा ने हुस्न इतना ।
तेरे पीछे ज़माना चल रहा है ।।
दिया था जो वसीयत में तुम्हें क्या ।
अभी तक वह खज़ाना चल रहा है ।।
तुम्हारे मैक़दे में देखता हूँ ।
बहुत पीना पिलाना चल रहा है ।।
ग़ज़ल को गुनगुनाने की थी हसरत ।
तसव्वुर में तराना चल रहा है ।।
यूँ उसकी शायरी पे जाइये मत ।
वहाँ मक़सद रिझाना चल रहा है ।।
अरूज़-ओ-फ़न से अब डरना है कैसा।
तुम्हारे साथ दाना चल रहा है ।।
शराफ़त बिक रही बाज़ार में अब ।
शरीफ़ों का बयाना चल रहा है ।।
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
अभी तक आना जाना चल रहा है ।
कोई रिश्ता पुराना चल रहा है ।।
सुना है शह्र की चर्चा में आगे ।
तुम्हारा ही फ़साना चल रहा है ।।
इधर दिल पर लगी है चोट गहरी ।
उधर तो मुस्कुराना चल रहा है ।।
कहीं तरसी जमीं है आब के बिन ।
कहीं मौसम सुहाना चल रहा है ।।
तुझे बख़्शा खुदा ने हुस्न इतना ।
तेरे पीछे ज़माना चल रहा है ।।
दिया था जो वसीयत में तुम्हें क्या ।
अभी तक वह खज़ाना चल रहा है ।।
तुम्हारे मैक़दे में देखता हूँ ।
बहुत पीना पिलाना चल रहा है ।।
ग़ज़ल को गुनगुनाने की थी हसरत ।
तसव्वुर में तराना चल रहा है ।।
यूँ उसकी शायरी पे जाइये मत ।
वहाँ मक़सद रिझाना चल रहा है ।।
अरूज़-ओ-फ़न से अब डरना है कैसा।
तुम्हारे साथ दाना चल रहा है ।।
शराफ़त बिक रही बाज़ार में अब ।
शरीफ़ों का बयाना चल रहा है ।।
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
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