तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

गर लुटे सारा खज़ाना चुप रहो

ग़ज़ल 
2122 2122 212 

आज  उनका  है ज़माना  चुप रहो ।
गर  लुटे  सारा  खज़ाना  चुप रहो ।।

क्या  दिया है पांच  वर्षों  में   मुझे ।
मांगते  हो  मेहनताना  चुप  रहो ।।

रोटियों   के  चंद  टुकड़े  डालकर ।
मेरी  गैरत  आजमाना  चुप   रहो ।।

मंदिरों मस्ज़िद  से  उनका  वास्ता ।
हरकतें  हैं  वहिसियाना  चुप  रहों ।।

लुट गया जुमलों पे सारा मुल्क जब ।
फिर नये  सपने दिखाना चुप रहो ।।

दांव  तो  अच्छे  चले थे  जीत  के ।
हार पर अब तिलमिलाना चुप रहो ।।

दी  गई  नादान  को बन्दूक  जब ।
बन  गया खुद ही निशाना चुप रहो ।।

हम तुम्हारी पढ़ चुके फ़ितरत मियाँ ।
अब  मुझे  अपना  बनाना  चुप रहो ।।

हक़  हमारा  छीन  कर  तुम  ले गए ।
और अब हमको लुभाना चुप रहो ।।

हम गरीबों  का  उड़ाया  है मज़ाक ।
हाले दिल  पर मुस्कुराना चुप रहो ।।

इन्तकामी   हौसला   मेरा  भी   है ।
धूल  तुमको  है  चटाना  चुप  रहो ।।

       -- डॉ0 नवीन मणि त्रिपाठी 
         मौलिक अप्रकाशित

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