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बहुत से लोग बेघर हो गए हैं ।
सुना हालात बदतर हो गए हैं ।।
मुहब्बत उग नहीं सकती यहां पर ।
हमारे खेत बंजर हो गए हैं ।।
पता हनुमान की है जात जिनको।
सियासत के सिकन्दर हो गए हैं ।।
यहां हर शख्स दंगाई है यारो ।
सभी के पास ख़ंजर हो गए हैं ।।
सलीका ही नहीं चलने का जिनको ।
वही भारत के रहबर हो गए हैं ।।
लुटेरे मुल्क़ में बेख़ौफ़ हैं अब ।
बदन पर सब के खद्दर हो गए हैं ।।
मेरा धन लूट कर देते जो तुमको ।
वही हाकिम मुकर्रर हो गए हैं ।।
करप्शन की सुनामी देखिए तो ।
नदी नाले समंदर हो गए हैं ।।
कलम यूँ ही उगलती आग कब है ।
मुझे भी गम मयस्सर हो गए हैं ।।
अदालत में तो उसकी हार तय है ।
तुम्हारे साथ अफ़सर हो गए हैं ।।
डॉ0 नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
बहुत से लोग बेघर हो गए हैं ।
सुना हालात बदतर हो गए हैं ।।
मुहब्बत उग नहीं सकती यहां पर ।
हमारे खेत बंजर हो गए हैं ।।
पता हनुमान की है जात जिनको।
सियासत के सिकन्दर हो गए हैं ।।
यहां हर शख्स दंगाई है यारो ।
सभी के पास ख़ंजर हो गए हैं ।।
सलीका ही नहीं चलने का जिनको ।
वही भारत के रहबर हो गए हैं ।।
लुटेरे मुल्क़ में बेख़ौफ़ हैं अब ।
बदन पर सब के खद्दर हो गए हैं ।।
मेरा धन लूट कर देते जो तुमको ।
वही हाकिम मुकर्रर हो गए हैं ।।
करप्शन की सुनामी देखिए तो ।
नदी नाले समंदर हो गए हैं ।।
कलम यूँ ही उगलती आग कब है ।
मुझे भी गम मयस्सर हो गए हैं ।।
अदालत में तो उसकी हार तय है ।
तुम्हारे साथ अफ़सर हो गए हैं ।।
डॉ0 नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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