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इतनी मेरे करम की सजाएं मुझे न दो ।
जलता चराग हूँ मैं हवाएं मुझे न दो ।।
कर दे कहीं न ख़ाक मुझे तिश्नगी की आग।
हो दूर मैकदा ये दुआएं मुझे न दो ।।
जीना मुहाल कर दे यहां खुशबुओं का दौर ।
घुट जाए मेरा दम वो फ़जाएँ मुझे न दो ।।
यूँ ही तमाम फर्ज अधूरे हैं अब तलक ।
सर पर अभी से और बलाएँ मुझे न दो ।।
पूछा करो गुनाह कभी अपनी रूह से ।
गर बेकसूर हूँ तो सजाएं मुझे न दो ।।
इतना भी कम नहीं कि तग़ाफ़ुल में जी रहा ।
यूँ महफिलों में अपनी जफाएँ मुझे न दो ।।
कर लोगे तुम वसूल मेरे जिस्म से भी सूद ।
ख़ैरात कह के और वफ़ाएँ मुझे न दो ।।
कुछ तो शरारतें थीं तुम्हारी अदा की यार ।
मुज़रिम बना के सारी खताएँ मुझे न दो ।।
गर बेसबब ही रूठ के जाना तुम्हें है तो ।
हर बार दूर जा के सदाएं मुझे न दो ।।
खुश हूँ मैं आज हिज्र के भी दरमियाँ बहुत ।
बीमारे ग़म की यार दवाएं मुझे न दो ।।
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
इतनी मेरे करम की सजाएं मुझे न दो ।
जलता चराग हूँ मैं हवाएं मुझे न दो ।।
कर दे कहीं न ख़ाक मुझे तिश्नगी की आग।
हो दूर मैकदा ये दुआएं मुझे न दो ।।
जीना मुहाल कर दे यहां खुशबुओं का दौर ।
घुट जाए मेरा दम वो फ़जाएँ मुझे न दो ।।
यूँ ही तमाम फर्ज अधूरे हैं अब तलक ।
सर पर अभी से और बलाएँ मुझे न दो ।।
पूछा करो गुनाह कभी अपनी रूह से ।
गर बेकसूर हूँ तो सजाएं मुझे न दो ।।
इतना भी कम नहीं कि तग़ाफ़ुल में जी रहा ।
यूँ महफिलों में अपनी जफाएँ मुझे न दो ।।
कर लोगे तुम वसूल मेरे जिस्म से भी सूद ।
ख़ैरात कह के और वफ़ाएँ मुझे न दो ।।
कुछ तो शरारतें थीं तुम्हारी अदा की यार ।
मुज़रिम बना के सारी खताएँ मुझे न दो ।।
गर बेसबब ही रूठ के जाना तुम्हें है तो ।
हर बार दूर जा के सदाएं मुझे न दो ।।
खुश हूँ मैं आज हिज्र के भी दरमियाँ बहुत ।
बीमारे ग़म की यार दवाएं मुझे न दो ।।
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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