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कब तक सहेंगे दर्द यहाँ ख़ामुशी से हम।
करते रहे सवाल यही ज़िंदगी से हम ।।1
यूँ हिज़्र की न चर्चा करो हम से आजकल ।
निकले हैं जैसे -तैसे सनम तीरगी से हम ।।2
शंकर की तर्ह या कभी सुकरात की तरह ।
पीने लगे हैं ज़ह्र भी अब तो खुशी से हम ।।3
पाबंदियों के दौर में ये पूछिये न आप ।
कितना करेंगे सच को बयाँ शाइरी से हम ।।4
साक़ी ने जाम तक न दिया मैक़दे में तब ।
जब बेक़रार थे वहाँ तिश्ना-लबी से हम ।।5
शब भर न आई नीद हमें कोशिशों के बाद ।
आये हैं जब भी शाम को तेरी गली से हम ।।6
तीरे नज़र का था वो निशाना कमाल का ।
होते रहे तबाह तेरी आशिक़ी से हम ।।7
--नवीन