तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

सोमवार, 8 जुलाई 2013

बन के काली घटा वह बरसती रही

जिन्दगी थी अमावस  की काली निशा ,चादनी  की तरह  वह बिखरती रही |
रौशनी के लिए जब शलभ चल पड़े ,जाने  क्यूँ रात भर वह सिसकती रही ||


जब पपिहरे की पी की सदा को सुनी ,और भौरों ने कलियों से  की  आशिकी |
कोई  शहनाई  जब भी बजी  रात में ,कल्पना  की  शमा  में  मचलती  रही ||


मन में तृष्णा जगी फिर क्षुधा भी जगी , एक संगीत  की नव विधा  भी जगी |
जब सितारों से  झंकृत प्रणय स्वर मिले ,गीत रस को लिए वह  बहकती रही ||


शब्द  थे  मौन ,पर  नैन सब कह गए ,मन की सारी व्यथा की कथा कह गये |
ज्वार  आया  समंदर  की  लहरें  उठी ,वह  नदी  तो  मिलन  में उफनती रही ||


उम्र  दहलीज  पर  दस्तकें  दे  गयी , अनछुई  सी  चुभन  भावना  कह  गयी |
एक   शैलाब  से   डगमगाए  कदम ,वक्त  की   धार  से  वह  फिसलती  रही ||


एक  ज्वालामुखी  जल  उठी  रात  में , साँस  दहकी  बहुत,  तेज  अंगार  में |
जब  हवाओं  ने  लपटों  से  की  दोस्ती ,मोम  का  दीप बन के पिघलती रही ||


आज  सावन   की  पुरवा   हवा  जो  चली , द्वंद  संकोच  ठंढी  पवन  ले  उडी |
चेतना  खो  गयी  एक  तन्द्रा  मिली ,बन  के  काली  घटा  वह  बरसती रही ||
                                        "नवीन"

21 टिप्‍पणियां:

  1. चुनने में बिफल रही कि कौन सी पंक्तियाँ ज्यादा अच्छी लगी
    दिल को छु गई
    हार्दिक शुभकामनायें

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  2. waah bahut khub naveen ji anupam bhav sanyojan se susajit rachna.

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  3. वाह वाह !!! बहुत उम्दा लाजबाब अभिव्यक्ति,,,

    RECENT POST: गुजारिश,

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  4. bahut khub har ek sabd kuch kahne ki kosis kar reha hai bahut hi sunder rachna

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  5. जी -
    सुन्दर
    प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय-

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  6. शब्द थे मौन ,पर नैन सब कह गए ,मन की सारी व्यथा की कथा कह गये ..

    गहरे भाव लिए है हर छंद नवीन जी ... भाव और शब्दों का सुन्दर संगम ... लाजवाब रचना ...

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  7. वाह बहुत खूब ..उम्दा शब्द रचना

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  8. वाह..बेहतरीन सृजन..
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति....
    :-)

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  9. उम्र दहलीज पर दस्तकें दे गयी , अनछुई सी चुभन भावना कह गयी |

    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति....!!

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  10. बहुत उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  11. सभी शेर बहुत उम्दा, दाद स्वीकारें.

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  12. वाह वर्तमान को उकेरती विचारपूर्ण गजल
    बहुत सुंदर
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    केक्ट्स में तभी तो खिलेंगे--------

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  13. वाह बहुत खूब .....बहुत उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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