तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

रविवार, 15 मार्च 2020

होती है बेनक़ाब सियासत कभी कभी

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लेती है इम्तिहान ये उल्फ़त कभी कभी ।
लगती है राहे इश्क़ में तुहमत कभी कभी ।।

आती  है उसके दर से हिदायत कभी कभी ।
होती खुदा की हम पे है रहमत कभी कभी ।।

चहरे को देखना है तो नजरें बनाये रख ।
होती है बेनक़ाब सियासत कभी कभी ।।

यूँ  ही  नहीं  हुआ है वो बेशर्म दोस्तों ।
बिकती है अच्छे दाम पे गैरत कभी कभी ।।

मुझ पर सितम से पहले ऐ क़ातिल तू सोच ले ।
देती सजा ए मौत है कुदरत कभी कभी ।।

इज़हारे इश्क़ मैं ही किये जा रहा हुजूऱ।
कुछ तो उठाएं आप भी ज़हमत कभी कभी ।।

आसां नहीं है मैक़दे को भूलना सनम ।
देती सकून रिन्द की सुहबत कभी कभी ।।

उसने बुला लिया है तो मर्जी खुदा की है ।
किस्मत से मिलती यार की कुर्बत कभी कभी ।।

जुगनू की तर्ह जश्न मनाना मेरे हबीब ।
जब  जिंदगी में देखना जुल्मत कभी कभी ।।

कैसे ग़ज़ल कहूं मैं यहाँ मुश्किलात में ।
मिलती है आजकल मुझे मुहलत कभी कभी।।

कब तक कहेंगे आप मियां शाम को सहर ।
सच के लिए भी कीजिये हिम्मत कभी कभी ।।

        -- नवीन मणि त्रिपाठी 
        मौलिक अप्रकाशित

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