ग़ज़ल
मुहिम ऐसी चलाई जा रही है ।।
सियासत आजमाई जा रही है ।।
हमारी भूख की है फिक्र किसको ।
नई साजिश रचाई जा रही है ।
खरीदारों की हस्ती देखिये अब ।
बड़ी बोली लगाई जा रही है ।।
सुना है कारनामे पर तुम्हारे ।
बहुत उँगली उठाई जा रही है ।।
वहाँ कानून जिंदा क्या रहेगा ।
जहाँ धज्जी उड़ाई जा रही है ।।
कहीं बे आबरू होकर न गिरना ।
सुना कुर्सी हटाई जा रही है ।।
ठगी सी सोचती मासूम जनता ।
ये क्या सूरत दिखाई जा रही है ।।
अहं से थे बहुत बीमार तुम भी ।
तुम्हारी की दवाई जा रही है ।।
झुकी रहनी थी जिसको शर्म से अब ।
नज़र वो फिर मिलाई जा रही है ।।
--- नवीन मणि त्रिपाठी
मुहिम ऐसी चलाई जा रही है ।।
सियासत आजमाई जा रही है ।।
हमारी भूख की है फिक्र किसको ।
नई साजिश रचाई जा रही है ।
खरीदारों की हस्ती देखिये अब ।
बड़ी बोली लगाई जा रही है ।।
सुना है कारनामे पर तुम्हारे ।
बहुत उँगली उठाई जा रही है ।।
वहाँ कानून जिंदा क्या रहेगा ।
जहाँ धज्जी उड़ाई जा रही है ।।
कहीं बे आबरू होकर न गिरना ।
सुना कुर्सी हटाई जा रही है ।।
ठगी सी सोचती मासूम जनता ।
ये क्या सूरत दिखाई जा रही है ।।
अहं से थे बहुत बीमार तुम भी ।
तुम्हारी की दवाई जा रही है ।।
झुकी रहनी थी जिसको शर्म से अब ।
नज़र वो फिर मिलाई जा रही है ।।
--- नवीन मणि त्रिपाठी
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