-ग़ज़ल-
सजाए मौत का ख़तरा ख़ता होने से पहले था ।
हमें अहसास मक़तल का फना होने से पहले था ।।
बदलती है ये फ़ितरत एक दिन इंसान की ख्वाहिश ।
तेरा अंदाज़े उल्फ़त तो जफ़ा होने से पहले था ।।
बरसतीं रह गईं आंखें भी उसकी हिज़्र में देखो ।
बहुत मग़रूर जो तुझ पर फ़िदा होने से पहले था ।।
कफ़स में कैद करके तू बना बैठा यहाँ मुजरिम ।
जहां आजाद मेरा दिल तेरा होने से पहले था ।।
तुम्हारे हुस्न से जब जाम छलकेगा तस्व्वुर कर ।
कोई बेहोश महफ़िल में नशा होने से पहले था ।।
हुए कुर्बान जिसकी इल्तिजा पर हम यहाँ यारो ।
वही दुश्मन हमारा रहनुमा होने से पहले था ।।
उजाला बन के बिखरा है रक़ीबों के दिलों में अब ।
मेरा महबूब जो इक दिन जुदा होने से पहले था ।।
न हम तूफ़ाँ से टकराते अगर वो मान जाते तो ।
बहुत छोटा मेरा मुद्दा बड़ा होने से पहले था ।।
तेरी तक़रीर सुनकर याद आया है फ़साना फिर ।
बुरा इंसान तू भी मुस्तफ़ा होने से पहले था ।।
मुकद्दर ही बदल डाला जो जलती आग में तपकर ।
सुना बदरंग वो सोना खरा होने से पहले था ।।
तेरी रहमत से मुमकिन था इलाजे इश्क़ ऐ ज़ाना ।
बड़ा मायूस ये आशिक दवा होने से पहले था ।।
--डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
सजाए मौत का ख़तरा ख़ता होने से पहले था ।
हमें अहसास मक़तल का फना होने से पहले था ।।
बदलती है ये फ़ितरत एक दिन इंसान की ख्वाहिश ।
तेरा अंदाज़े उल्फ़त तो जफ़ा होने से पहले था ।।
बरसतीं रह गईं आंखें भी उसकी हिज़्र में देखो ।
बहुत मग़रूर जो तुझ पर फ़िदा होने से पहले था ।।
कफ़स में कैद करके तू बना बैठा यहाँ मुजरिम ।
जहां आजाद मेरा दिल तेरा होने से पहले था ।।
तुम्हारे हुस्न से जब जाम छलकेगा तस्व्वुर कर ।
कोई बेहोश महफ़िल में नशा होने से पहले था ।।
हुए कुर्बान जिसकी इल्तिजा पर हम यहाँ यारो ।
वही दुश्मन हमारा रहनुमा होने से पहले था ।।
उजाला बन के बिखरा है रक़ीबों के दिलों में अब ।
मेरा महबूब जो इक दिन जुदा होने से पहले था ।।
न हम तूफ़ाँ से टकराते अगर वो मान जाते तो ।
बहुत छोटा मेरा मुद्दा बड़ा होने से पहले था ।।
तेरी तक़रीर सुनकर याद आया है फ़साना फिर ।
बुरा इंसान तू भी मुस्तफ़ा होने से पहले था ।।
मुकद्दर ही बदल डाला जो जलती आग में तपकर ।
सुना बदरंग वो सोना खरा होने से पहले था ।।
तेरी रहमत से मुमकिन था इलाजे इश्क़ ऐ ज़ाना ।
बड़ा मायूस ये आशिक दवा होने से पहले था ।।
--डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें