2122 1212 22
बेख़ुदी तुझको आजमाने में ।
उम्र गुजरी शराब खाने में ।।
हो मुबारक़ तुझे ये जुर्माना ।
आदमी लुट गया चुकाने में ।।
इस तरह मत गिरो नज़र से तुम ।
इक ज़माना लगे उठाने में ।।
अब करप्शन पे वार मत करिए ।
हस्तियां मिट चुकीं मिटाने में ।।
क्यों बचाने की कोशिशें पैहम ।
जब नज़र लग चुकी ख़ज़ाने में ।।
शाम को रोटियां वही देगा ।
जो समाया है दाने दाने में ।।
ये तो महंगाई की तिज़ारत है ।
बिक रहा हूँ मैं घर चलाने में ।।
नौजवानों से छीन कर रोजी ।
आप तो लग गए कमाने में ।।
नफरतों का अफीम बाटो तुम ।
मुल्क बदलेगा कत्लखाने में ।।
ढह न जाये कहीं हुकूमत ये ।
जिसको सदियां लगीं बनाने में ।।
--डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
बेख़ुदी तुझको आजमाने में ।
उम्र गुजरी शराब खाने में ।।
हो मुबारक़ तुझे ये जुर्माना ।
आदमी लुट गया चुकाने में ।।
इस तरह मत गिरो नज़र से तुम ।
इक ज़माना लगे उठाने में ।।
अब करप्शन पे वार मत करिए ।
हस्तियां मिट चुकीं मिटाने में ।।
क्यों बचाने की कोशिशें पैहम ।
जब नज़र लग चुकी ख़ज़ाने में ।।
शाम को रोटियां वही देगा ।
जो समाया है दाने दाने में ।।
ये तो महंगाई की तिज़ारत है ।
बिक रहा हूँ मैं घर चलाने में ।।
नौजवानों से छीन कर रोजी ।
आप तो लग गए कमाने में ।।
नफरतों का अफीम बाटो तुम ।
मुल्क बदलेगा कत्लखाने में ।।
ढह न जाये कहीं हुकूमत ये ।
जिसको सदियां लगीं बनाने में ।।
--डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
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