तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

मंगलवार, 24 मार्च 2020

ग़ज़ल - ख़ुदा ख़ैर करे

2122 1122 1122 22

उसकी आँखें हैं ख़ता वार ख़ुदा ख़ैर करे'
दिल किया मेरा गिरफ़्तार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

जमीं की तिश्नगी को देख रहा है बादल ।
आज बारिस के हैं आसार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

नाम आया है मेरा जब से सनम के लब पर 
पूरी बस्ती हुई बेज़ार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

हर तरफ़ उनकी अदाओं पे शोर बरपा है ।
जिंदगी जीना है दुश्वार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

बिजलियाँ रोज़ गिराते हैं नशेमन पे सनम ।
सब्र  की  टूटे  न दीवार  ख़ुदा  ख़ैर करे ।।

कास आएं तो सही आप मेरी महफ़िल में ।।
बज़्म हो जाए ये गुलज़ार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

अब तो मासूम दिलों पर है उन्हीं का कब्जा ।
हुस्न की चल रही सरकार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

लोग उल्फ़त की तिज़ारत का तक़ाज़ा लेकर ।
खुद ब खुद आ रहे बाज़ार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

अपनी ताक़त पे जो इतरा रहे थे दुनियाँ में ।
आज  वो मुल्क भी लाचार ख़ुदा खैर करे ।।

वो क़यामत है क़रोना की तरह छूते ही ।
हो गया दिल कोई बीमार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

क़ैद हैं घर में मिलें भी तो भला कैसे हम ।
याद तड़पाये बहुत बार ख़ुदा ख़ैर करे ।।

         --डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

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