212 212 212 212
खो रहा दिन ब दिन ऐतबार आदमी ।।
मत कहो हो गया होशियार आदमी ।।
अब भरोसा न कीजै किसी पर यहाँ।
हो रहा आदमी का शिकार आदमी।।
दिन गुजरता नहीं रात ढलती नहीं ।
कह गया मुझसे ये बेक़रार आदमी ।।
मांगिये न मदद अब किसी से यहां ।
एक दिन सर पे होगा सवार आदमी ।।
अब मुहब्बत को यारो छुपाकर रखो ।
मन में पैदा न कर दे दरार आदमी ।।
साजिशें रच रहा दिल जलाने की वो।
दिल का जब से हुआ राजदार आदमी ।।
महफिलों में लगीं बोलियां हुस्न पर ।
जिस्म का जब हुआ इश्तिहार आदमी ।
उसको हिन्दू मुसलमां में बांटा गया ।
मुल्क पर जब किया जाँ निसार आदमी ।।
ऐ सियासत बता दे जरा सच हमें ।
हो गया देश से क्यूँ फ़रार आदमी ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
खो रहा दिन ब दिन ऐतबार आदमी ।।
मत कहो हो गया होशियार आदमी ।।
अब भरोसा न कीजै किसी पर यहाँ।
हो रहा आदमी का शिकार आदमी।।
दिन गुजरता नहीं रात ढलती नहीं ।
कह गया मुझसे ये बेक़रार आदमी ।।
मांगिये न मदद अब किसी से यहां ।
एक दिन सर पे होगा सवार आदमी ।।
अब मुहब्बत को यारो छुपाकर रखो ।
मन में पैदा न कर दे दरार आदमी ।।
साजिशें रच रहा दिल जलाने की वो।
दिल का जब से हुआ राजदार आदमी ।।
महफिलों में लगीं बोलियां हुस्न पर ।
जिस्म का जब हुआ इश्तिहार आदमी ।
उसको हिन्दू मुसलमां में बांटा गया ।
मुल्क पर जब किया जाँ निसार आदमी ।।
ऐ सियासत बता दे जरा सच हमें ।
हो गया देश से क्यूँ फ़रार आदमी ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
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