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जो बीनाई में मंज़र आ रहे हैं ।
नज़र वो बद से बदतर आ रहे हैं ।।
किताबें हाथ मे होनी थी जिनके ।
उन्हीं के हाथ ख़ंजर आ रहे हैं ।।
भरोसा जिसको खुद पर ही नहीं है ।
उसी के साथ रहबर आ रहे हैं ।।
यकीं करना बहुत मुश्किल है उन पे ।
पहन कर जो भी खद्दर आ रहे हैं ।।
जरा बच के रहो रानाइयों से ।
सुना है अब सितमगर आ रहे हैं ।।
बनाऊंगा उन्हीं से घर मैं इक दिन ।
मेरे घर तक जो पत्थर आ रहे हैं ।।
किये थे वस्ल पर जो प्रश्न तुमने ।
सनम के ख़त में उत्तर आ रहे हैं ।।
तू कर साहिल पे अब नजरे इनायत ।
जहाँ तूफ़ां निरन्तर आ रहे हैं ।।
वही जख़्मी हुए तीरे नज़र से ।
जो तेरी ज़द में अंदर आ रहे हैं ।।
जो दाने डाले थे उल्फ़त के तूने ।
तेरी छत पे कबूतर आ रहे हैं ।।
तेरी बस्ती में देखो हुस्न वाले ।
तेरा लेकर मुकद्दर आ रहे हैं ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
जो बीनाई में मंज़र आ रहे हैं ।
नज़र वो बद से बदतर आ रहे हैं ।।
किताबें हाथ मे होनी थी जिनके ।
उन्हीं के हाथ ख़ंजर आ रहे हैं ।।
भरोसा जिसको खुद पर ही नहीं है ।
उसी के साथ रहबर आ रहे हैं ।।
यकीं करना बहुत मुश्किल है उन पे ।
पहन कर जो भी खद्दर आ रहे हैं ।।
जरा बच के रहो रानाइयों से ।
सुना है अब सितमगर आ रहे हैं ।।
बनाऊंगा उन्हीं से घर मैं इक दिन ।
मेरे घर तक जो पत्थर आ रहे हैं ।।
किये थे वस्ल पर जो प्रश्न तुमने ।
सनम के ख़त में उत्तर आ रहे हैं ।।
तू कर साहिल पे अब नजरे इनायत ।
जहाँ तूफ़ां निरन्तर आ रहे हैं ।।
वही जख़्मी हुए तीरे नज़र से ।
जो तेरी ज़द में अंदर आ रहे हैं ।।
जो दाने डाले थे उल्फ़त के तूने ।
तेरी छत पे कबूतर आ रहे हैं ।।
तेरी बस्ती में देखो हुस्न वाले ।
तेरा लेकर मुकद्दर आ रहे हैं ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
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