212 212 212 212
जब से ख़ामोश वो सिसकियां हो गईं ।
दूरियां प्यार के दरमियाँ हो गईं ।।
कत्ल कर दे न ये भीड़ ही आपका ।
अब तो क़ातिल यहाँ बस्तियाँ हो गईं ।।
आप ग़मगीन आये नज़र बारहा ।
आपके घर में जब बेटियां हो गईं ।।
कैसी तक़दीर है इस वतन की सनम ।
आलिमों से खफ़ा रोटियां हो गईं ।।
फूल को चूसकर उड़ गईं शाख से ।
कितनी चालाक ये तितलियां हो गईं ।।
दर्दो गम पर मेरे मीडिया चुप रही ।
उनकी अय्याशियां सुर्खियां हो गईं ।।
हर जुबां हर कलम पर हैं ताले पड़े ।
कितनी मग़रूर ये हस्तियां हो गईं
।।
तब से लूटा गया देश को शान से ।
जब से महंगी यहाँ कुर्सियां हो गयीं ।।
शब्दार्थ
आलिम - पढा लिखा बुद्धिमान
बारहा -बार बार
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
जब से ख़ामोश वो सिसकियां हो गईं ।
दूरियां प्यार के दरमियाँ हो गईं ।।
कत्ल कर दे न ये भीड़ ही आपका ।
अब तो क़ातिल यहाँ बस्तियाँ हो गईं ।।
आप ग़मगीन आये नज़र बारहा ।
आपके घर में जब बेटियां हो गईं ।।
कैसी तक़दीर है इस वतन की सनम ।
आलिमों से खफ़ा रोटियां हो गईं ।।
फूल को चूसकर उड़ गईं शाख से ।
कितनी चालाक ये तितलियां हो गईं ।।
दर्दो गम पर मेरे मीडिया चुप रही ।
उनकी अय्याशियां सुर्खियां हो गईं ।।
हर जुबां हर कलम पर हैं ताले पड़े ।
कितनी मग़रूर ये हस्तियां हो गईं
।।
तब से लूटा गया देश को शान से ।
जब से महंगी यहाँ कुर्सियां हो गयीं ।।
शब्दार्थ
आलिम - पढा लिखा बुद्धिमान
बारहा -बार बार
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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