***इस्लाह ए सुख़न से हासिल ग़ज़ल***
122 122 122 122
न जाने किधर जा रही ये डगर है ।
सुना है मुहब्बत का लम्बा सफ़र है ।।
तेरी चाहतों का हुआ ये असर है ।
झुकी बाद मुद्दत के उनकी नज़र है ।।
नहीं यूँ ही दीवाने आए हरम तक ।
इशारा तेरा भी हुआ मुख़्तसर है ।।
यहाँ राज़े दिल मत सुनाओ किसी को ।
ज़माना कहाँ रह गया मोतबर है ।।
है साहिल से मिलने का उसका इरादा ।
उठी जो समंदर में ऊंची लहर है ।।
है मक़तल सा मंजर हटी जब से चिलमन ।
बड़ी क़ातिलाना तुम्हारी नज़र है ।।
बतातीं हैं बिस्तर की ये सिलवटें अब ।
तुम्हें नींद आती नहीं रात भर है ।।
वहीं बैठती है वो रंगीन तितली ।
गुलों के लबों पर तबस्सुम जिधर है ।।
सुना हुस्न वालों के ख़ामोश लब हैं ।
लिपिस्टिक की रंगत का जाने का डर है ।।
ये कोशिश है मेरी उसे भूल जाऊं ।
मगर याद आता वो शामो सहर है ।।
तमन्ना थी जिसको बसा लूं मैं दिल मे ।
मेरी आरजू से वही बेख़बर है ।।
मुलाक़ात जाइज़ कहेगी ये दुनिया ।
तेरे ही गली से मेरी रहगुज़र है ।।
मुख़्तसर - छोटा
मोतबर - विश्वसनीय
मक़तल - कत्ल का स्थान
तबस्सुम - मुस्कुराहट
सहर - सुबह
रहगुज़र - रास्ता
- नवीन मणि त्रिपाठी
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न जाने किधर जा रही ये डगर है ।
सुना है मुहब्बत का लम्बा सफ़र है ।।
तेरी चाहतों का हुआ ये असर है ।
झुकी बाद मुद्दत के उनकी नज़र है ।।
नहीं यूँ ही दीवाने आए हरम तक ।
इशारा तेरा भी हुआ मुख़्तसर है ।।
यहाँ राज़े दिल मत सुनाओ किसी को ।
ज़माना कहाँ रह गया मोतबर है ।।
है साहिल से मिलने का उसका इरादा ।
उठी जो समंदर में ऊंची लहर है ।।
है मक़तल सा मंजर हटी जब से चिलमन ।
बड़ी क़ातिलाना तुम्हारी नज़र है ।।
बतातीं हैं बिस्तर की ये सिलवटें अब ।
तुम्हें नींद आती नहीं रात भर है ।।
वहीं बैठती है वो रंगीन तितली ।
गुलों के लबों पर तबस्सुम जिधर है ।।
सुना हुस्न वालों के ख़ामोश लब हैं ।
लिपिस्टिक की रंगत का जाने का डर है ।।
ये कोशिश है मेरी उसे भूल जाऊं ।
मगर याद आता वो शामो सहर है ।।
तमन्ना थी जिसको बसा लूं मैं दिल मे ।
मेरी आरजू से वही बेख़बर है ।।
मुलाक़ात जाइज़ कहेगी ये दुनिया ।
तेरे ही गली से मेरी रहगुज़र है ।।
मुख़्तसर - छोटा
मोतबर - विश्वसनीय
मक़तल - कत्ल का स्थान
तबस्सुम - मुस्कुराहट
सहर - सुबह
रहगुज़र - रास्ता
- नवीन मणि त्रिपाठी
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