तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

शनिवार, 7 जनवरी 2012

यहाँ सस्ता नहीं कुछ भी

                 यहाँ सस्ता नहीं कुछ भी .....



यहाँ सस्ता नहीं कुछ भी, यहाँ तो  नाम बिकता है |
तुम्हारे  जहाँ   का  ईमान , तो  बेदाम  बिकता  है ||

सिसकती माँ के आँचल से, तड़प कर भूख से रोया |
मिला कर दूध में पानी, तो  सुबहो शाम बिकता है ||
  

वो  लज्जा है ,हया  है ,शर्म  है ,आँखों  का  पानी है |
शहर में आबरू अस्मत भी  खुले आम  बिकता है ||

 
उसे बिकता हुआ देखा तो ,अश्कों ने  भिगो डाला |
करूं क्या  एक  की चर्चा, यहाँ  आवाम बिकता है ||


बाप  मजबूर  था , बेटी  का दूल्हा  ला नहीं पाया |
मंडी  में  यहाँ  दूल्हा  भी , एक  दाम  बिकता  है ||
 

मौत   की   खातिर  शुकूं, ढूढ़ा   इसी  बाज़ार  में  |
 क्या  खबर  थी  अब  यहाँ  कोहराम  बिकता  है ||
 

वो  शातिर है  वो झूठा है जमाना  खूब वाकिफ है |
उसी को ताज है हासिल, यहाँ  ईनाम  बिकता  है ||

बेचने  वालों  ने  छोड़ा  नहीं, कुछ भी  यहाँ  यारों  |
कहीं जीसस ,कहीं अल्ला कहीं पर राम बिकता है ||
                                       "नवीन "


30 टिप्‍पणियां:

  1. वो शातिर है वो झूठा है जमाना खूब वाकिफ है ,
    उसी को ताज है हासिल, यहाँ ईनाम बिकता है ।

    लाजवाब ग़ज़ल, हालात को बयां करती हुई।

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  2. "बेचने वालों ने छोड़ा नहीं, कुछ भी यहाँ यारों |
    कहीं जीसस ,कहीं अल्ला कहीं पर राम बिकता है ||"

    बहुत खूब ! गहरी चोट की है आपने ऊपर वाले के नाम पर लूट करने वालों पर। समाज के आलग-अलग वर्गों की बेबसी और पाखंडियों पर कस हुआ तंज ।
    इस संवेदनशील और वैचारिक गज़ल के लिये बधाई।

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  3. बेहतरीन गजल...बेहतरीन...शब्द....!
    हर शेर ने हिला कर रख दिया ..!
    सचमुच आपकी कलम तीखी है !
    उम्दा प्रस्तुति ....!

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  4. बढ़िया प्रस्तुति...
    आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 09-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  5. यहाँ सस्ता नहीं कुछ भी, यहाँ तो नाम बिकता है |
    वो शातिर है वो झूठा है जमाना खूब वाकिफ है |
    उसी को ताज है हासिल, यहाँ ईनाम बिकता है ||

    बेचने वालों ने छोड़ा नहीं, कुछ भी यहाँ यारों |
    कहीं जीसस ,कहीं अल्ला कहीं पर राम बिकता है ||

    बड़े ही वजनदार अश'आर हैं, भई वाह !!!

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  6. उम्दा लिखा है ..बिलकुल सटीक.. अच्छी लगी..

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  7. बेचने वालों ने छोड़ा नहीं, कुछ भी यहाँ यारों |
    कहीं जीसस ,कहीं अल्ला कहीं पर राम बिकता है ||

    क्या बात है ! अति सुन्दर .

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  8. उसे बिकता हुआ देखा तो ,अश्कों ने भिगो डाला |
    करूं क्या एक की चर्चा, यहाँ आवाम बिकता है ||

    बहुत सटीक गज़ल .. बहुत खूब

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  9. आज के ज़माने की बहुत ही सच्ची व सटीक तस्वीर पेश की है नवीन जी ..... इस असरदार रचना के लिए बधाई

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  10. बहुत सटीक और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...अंतस को भिगो गयी..

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  11. सबसे पहले हमारे ब्लॉग 'जज्बात....दिल से दिल तक' पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया.........आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ...........पहली ही पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब...........आज ही आपको फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे|

    कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए- (अरे हाँ भई, सन्डे को भी)

    http://jazbaattheemotions.blogspot.com/
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    एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|

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  12. बहुत बढिया नवीन भाई। यहां सस्ता है तो केवल गरीब का खून-पसीना।\

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  13. मौत की खातिर शुकूं, ढूढ़ा इसी बाज़ार में |
    क्या खबर थी अब यहाँ कोहराम बिकता है ||

    bahut hi prabhavshali ....lagata hai koi tamacha hai ..so nice !!

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  14. बेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा रचना ! बधाई !

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  15. आपके पोस्ट पर आकर का विचरण करना बड़ा ही आनंददायक लगता है । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .

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  16. मौत की खातिर शुकूं, ढूढ़ा इसी बाज़ार में |
    क्या खबर थी अब यहाँ कोहराम बिकता है ||

    बहुत बहुत बढ़िया..
    सादर.

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  17. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है

    ...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़

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  18. लिंक गलत देने की वजह से पुन: सूचना

    आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है

    ...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़

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  19. उसे बिकता हुआ देखा तो ,अश्कों ने भिगो डाला |
    करूं क्या एक की चर्चा, यहाँ आवाम बिकता है ||
    बहुत खूब कहा है आपने ..बेहतरीन ।

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  20. आज के जमाने में सब कुछ बिकता है ....सार्थक प्रस्तुति

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  21. आज के जमाने में सब बिकता है
    सत्य को उजागर करती सार्थक प्रस्तुती है

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  22. बहुत सुंदर प्रस्तुति, बेहतरीन गजल,वाह!!!!!!!!नवीन जी....क्या बात है
    new post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....

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  23. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपकी प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।

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  24. really teekhi kalam ki teekhi maar darshit ho rahi hai ghazal me.laajabaab.

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