ग़ज़ल आप सब की मुहब्बतों के हवाले
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जिनके चेहरे पे कशिश जुल्फ़ में रानाई हो ।
काश उनसे भी मेरी थोड़ी शनासाई हो ।।1
लफ़्ज़ ख़ामोश रहें बात हो दिल की दिल से।
रब करे उसकी मुहब्बत में ये गहराई हो ।।2
चाँद छूने की तमन्ना तो हो जाए पूरी ।
मेरी चाहत पे अगर आपकी बीनाई हो ।।3
वो तबस्सुम ,वो नज़ाक़त ,वो अदाएं उसकी ।
हूर इक आसमा से जैसे उतर आई हो ।।4
ऐसे हालात में मुमकिन है भला वस्ल कहाँ।
हो कुँआ मेरी तरफ़ उसकी तरफ़ खाई हो ।।5
हाले दिल जान के यूँ मुस्कुरा के चल देना ।
तुम भी औरों की तरह एक तमाशाई हो ।।6
वो वफ़ा इतनी किफ़ायत से यहाँ करते हैं ।
वक्त आ जाए तो इस क़र्ज़ की भरपाई हो ।।7
मुँह छुपा कर वो निकलते हैं इसी कूचे से ।
ऐसा लगता है किसी बात से रुसवाई हो ।।8
इस कदर ग़म है मेरे साथ यहाँ मुद्दत से ।
जैसे हर रस्म निभाने की कसम खाई हो ।। 9
इतने शिकवे गिले हैं आशिक़ों की कौन सुने ।
अब अदालत में कहीं इश्क़ पे सुनवाई हो ।।
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-डॉ0 नवीन मणि त्रिपाठी
शब्दार्थ -
कशिश- आकर्षण
रानाई - सौंदर्य या सुंदरता
शनासाईं -जान पहचान , परिचय
लफ्ज़ - शब्द
बीनाई - दृष्टि, विजन
तबस्सुम - मुस्कुराहट ,
हूर - परी
वस्ल - मिलन
तमाशाई - तमाशा देखने वाला ।
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