221 2121 1221 212
ये मैक़दा है फ़िक्र को दिल से निकाल दे ।
तू रंजो ग़म को आग के दरिया में डाल दे ।।1
उल्फ़त का ज़िक्र हो यहाँ पाकीज़गी के साथ ।
दुनिया तुम्हारे इश्क़ की जब भी मिसाल दे ।।2
वो होश में रहें न सनम होश में रहें ।
ऐ रब तू उसके वास्ते ऐसा विसाल दे ।।3
नाजुक मिजाज़ हैं वो ,उन्हें छेड़िये नहीं ।
ऐसा करें न काम जो दिल को मलाल दे ।।4
ग़म का असर न हो न खुशी की बहार हो ।
मौला तू मुझको ऐसे ही सांचे में ढाल दे ।।5
अब मयकशी के वास्ते मत जाइए वहाँ ।
महफ़िल जो हर ग़रीब की इज़्ज़त उछाल दे ।।6
रक्खे अना से दूर जो अपने शबाब को।
कुदरत उसी को बारहा हुस्ने जमाल दे ।।7
-- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें