बहरे कामिल मुसम्मन सालिम
मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन
11212 11212 11212 11212
मुझे मयकशी से गुरेज़ है , मेरी ज़िंदगी में न ख़्वार कर ।
मेरी तिश्नlगी तू बढा न अब मेरे साथ शाम गुज़ार कर ।।
मेरे हाले दिल को तू पूछ मत मेरे ज़ख्म को न कुरेद अब ।।
तुझे क्या मिलेगा ऐ बेवफा मेरे दर्द को यूँ उभार कर ।।2
ये जमाल तो है शबाब पर कोई चाँद उतरा जमीं पे है ।
वो तो बिजलियाँ ही गिरा गया सरे बज़्म जुल्फें सँवार कर ।।3
तेरे हुस्न पे जाँ निसार है , तेरी हर अदा का ग़ुलाम हूँ ।
शबे वस्ल है ज़रा पास आ , यूँ झुकी नज़र से न वार कर ।।4
तू नकाब अपना हटाये रख ,मेरी चाहतों का सवाल है ।
मेरी ख्वाहिशें हैं जवां जवां ,तुझे बारहा यूँ निहार कर ।।5
है लुटा लुटा सा चमन यहां ,ये शज़र खिजां का शिकार है ।
ऐ ख़ुदा ए हुस्न ठहर ज़रा मेरे बाग़ में तू बहार कर ।।6
यहां पायलों की खनक पे है मेरे दुश्मनों की तो चौकसी ।
तू सँभल सँभल के करीब आ कहीं घुघरुओं को उतार कर ।।7
--नवीन मणि त्रिपाठी
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