तीखी कलम से

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

सोमवार, 21 मार्च 2022

मुझे मयकशी से गुरेज़ है , मेरी ज़िंदगी में न ख़्वार कर

 बहरे कामिल मुसम्मन सालिम

मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन

11212 11212 11212 11212


मुझे मयकशी से गुरेज़ है , मेरी ज़िंदगी में न ख़्वार कर ।

मेरी तिश्नlगी तू बढा न अब मेरे साथ शाम गुज़ार कर ।।


मेरे हाले दिल को तू पूछ मत मेरे ज़ख्म को न कुरेद अब ।।

तुझे क्या मिलेगा ऐ बेवफा मेरे दर्द को यूँ उभार कर ।।2


ये जमाल तो है शबाब पर कोई चाँद उतरा जमीं पे है ।

वो तो बिजलियाँ ही गिरा गया सरे बज़्म जुल्फें सँवार कर ।।3


तेरे हुस्न पे जाँ निसार है , तेरी हर अदा का ग़ुलाम हूँ ।

शबे वस्ल है ज़रा पास आ , यूँ झुकी नज़र से न वार कर ।।4


तू नकाब अपना हटाये रख ,मेरी चाहतों का सवाल है ।

मेरी ख्वाहिशें  हैं जवां जवां ,तुझे बारहा यूँ निहार कर ।।5


है लुटा लुटा सा चमन यहां ,ये शज़र खिजां का शिकार है ।

ऐ ख़ुदा ए हुस्न ठहर ज़रा मेरे बाग़ में तू बहार कर ।।6


यहां पायलों की खनक पे है मेरे दुश्मनों की तो चौकसी ।

तू सँभल सँभल के करीब आ कहीं घुघरुओं को उतार कर ।।7


       --नवीन मणि त्रिपाठी

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