2122 2122 2122 212
चाहतों के नाम अपनी शाम करने के लिए ।।
हैं चरागों पर बहुत परवाने मरने के लिए ।।
तिश्नगी बुझती नहीं इस मयकशी के दौर में ।
रिन्द आते हैं यहाँ , हद से गुज़रने के लिए ।।
अब चमक के राज़ से पर्दा उठाकर देखिए ।
मुद्दतों से तप रहा सोना, निखरने के लिए ।।
इश्क़ ही काफ़ी नहीं है अब सनम के वास्ते ।
कुछ तो दौलत चाहिए दिल में उतरने के लिए ।।
उनके वादों पर भरोसा क्या करे कोई जनाब ।
इक बहाना चाहिए जिनको मुक़रने के लिए ।।
वो हक़ीक़त से रहा ता उम्र ग़ाफ़िल इस तरह ।
आइना देखा था जिसने बस सँवरने के लिए ।
हसरते परवाज़ अपनी तू छुपाए रख यहां ।
हैं बहुत सय्याद तेरे पर कतरने के लिए ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
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