1212 1122 1212 22
दिलो से दिल का रहे फ़ासला क़ुबूल नहीं ।
यूँ टूट जाये मेरा राबिता क़ुबूल नहीं ।।
है ऐतबार उसे मेरी बात पर कैसे ।
ज़माने भर का जिसे मशवरा क़ुबूल नहीं ।
हमें यकीन है जिंदा है चाहने वाला ।
हमारे दिल को अभी मर्सिया कूबूल नहीं ।।
बुखार उतरेगा उल्फ़त का हिज़्र से इक दिन ।
मग़र मरीज़ को ऐसी शिफ़ा क़बूल नहीं ।।
घुटन से निकला हूँ मुद्दत के बाद मैं यारो ।
अब उसके शह्र की आबो हवा क़ुबूल नहीं ।।
उसे यकीन है अपने हुनर की ताक़त पर ।
जिसे किसी का कोई तज़रिबा क़ुबूल नहीं ।।
ऐ जिंदगी तू मुझे बेख़ुदी में जीने दे ।
हो घर से दूर बहुत मैक़दा क़ुबूल नहीं ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें