"इस्लाह ए सुख़न "
(तरही मुशाइरः से हासिल ग़ज़ल )
1121 2122 1121 2122
तेरे इश्क़ की कहानी यूँ अवाम तक न पहुंचे ।।
जो मिला है दर्द तुझसे वो कलाम तक न पहुंचे ।।1
जो करेगा बज़्म रोशन वो क़मर मुझे है प्यारा ।
वो है चाँद ग़ैर का जो मेरे बाम तक न पहुँचे ।।2
मुझे डर नहीं है मय से मुझे डर है तिश्नगी का ।
मेरा हाथ मैक़दे में कहीं जाम तक न पहुंचे ।।3
है रक़ीब यह ज़माना , ज़रा बोल तू सँभल के ।
ये मुहब्बतों की चर्चा , तेरे नाम तक न पहुँचे ।।4
ये ख़ुदा की आरजू थी या ख़राब ही थी किस्मत ।
मेरे ख़त वो लौट आए ,जो मुकाम तक न पहुँचे ।।5
तुझे जाना है तो जा पर , नहीं दूर जा तू इतना ।
तेरे हुस्न को हमारा ये सलाम तक न पहुंचे ।।6
न रुकीं ये ख्वाहिशें ही न मिली ही कोई मंज़िल ।
ये है सिलसिला ए चाहत जो क़याम तक न पहुँचे ।।7
-- नवीन मणि त्रिपाठी
पेंटिग चित्र - राजा रवि वर्मा
साभार- गूगल
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