2122 1212 22
दिल में हौले से जब उतरता है ।
चांद हमसे सवाल करता है ।।
तुझसे कुर्बत के बाद जाने क्यूँ ।
दूर जाना बहुत अखरता है ।।
दुश्मनी में सुकून है साहिब ।
आदमी दोस्ती से डरता है ।।
उसकी फ़ितरत है सच ही बोलेगा ।
आइना कब भला मुकरता है ।।
कैसे कह दूँ कि ज़ख्म है ही नहीं।
दर्द रह रह के जब उभरता है ।।
तेरी नफ़रत की दास्ताँ सुनकर ।
ये बदन अब तलक सिहरता है ।।
ढल तो जाना है हुस्न को इक दिन ।
वक्त किसका यहां ठहरता है ।।
हाले दिल पूछते हैं वो मेरा ।
टूट कर ख्वाब जब बिखरता है ।।
खुशबुएँ ख़ुद बयान करतीं हैं ।
मेरे कूचे से वो गुज़रता है ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
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