2122 1212 22
उसकी ख़ुशबू है इन फ़िज़ाओं में ।
मैंने मांगा जिसे दुआओं में ।।1
अब दरीचों को खोल दो यारो ।
है कशिश आज की हवाओं में ।।2
जो जला दे मेरे रक़ीबों को ।
वो शरर आपकी अदाओं में ।।3
आज बरसात काश हो इतनी ।
जितना पानी हो इन घटाओं में ।।4
अब तो दरिया उफ़ान पर साहब ।
बह न जाएं कहीं बहावों में ।।5
बारहा खींच रहीं वो मुझको ।
चाहतें कुछ तो हैं सदाओं में ।।6
उनसे इज़हारे इश्क़ फिर कीजै ।
जो हैं बिखरे यहाँ अनाओं में ।।7
-नवीन मणि त्रिपाठी
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