ग़ज़ल
2122 2122 2122 2122
अति विवशता में मनुज क्यों मृत्यु का करता वरण है ।
हो गया क्या काल का ही इस धरा पर अवतरण है ।। 1
आत्मरक्षा की कला को आप विकसित कीजिये अब ।
यह प्रलय के आगमन का वस्तुतः पहला चरण है ।।2
चेतना भय मुक्त हो अब ,शक्ति की हों साधनाएं ।
कह रही गीता निरन्तर जन्म क्या और क्या मरण है ।।3
व्यर्थ आशाएं न पालें रेल की सम्पत्तियों से ।
राजनैतिक मूल्य का जब हो रहा प्रति दिन क्षरण है ।।4
अर्थ लोलुप है व्यवस्था , छा गए धन पशु यहाँ पर ।
तौलते जीवन से मदिरा , देश का यह सम्भरण है ।।5
कौन रोके कौन टोके झूठ का जयकार मित्रो ।
मीडिया का अतिक्रमण तो सभ्यताओं का हरण है ।। 6
-नवीन मणि त्रिपाठी
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