ग़ज़ल
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हातिम के मुक़द्दर में तो इशरत नहीं मिलती ।
दरिया को समुन्दर की वसीयत नहीं मिलती ।।
यूँ तो है बिकाऊ यहाँ हर आदमी लेकिन ।
इंसान को इंसान की कीमत नहीं मिलती ।।
इज़हार ज़रूरी है मुहब्बत का सनम से ।
चाहत से फ़क़त हुस्न की कुर्बत नहीं मिलती ।।
लौटा दे कोई मुझको मेरा लूटा हुआ दिल ।
दुनिया मे अभी इतनी शराफ़त नहीं मिलती ।।
वो लोग क़रीब आने की कोशिश में लगे हैं ।
जिनसे मेरे महबूब की सूरत नहीं मिलती ।।
हासिल हुआ है इश्क़ तो परदे में रखा कर।
यूँ ही किसी को यार ये दौलत नहीं मिलती ।।
दिन इतने बुरे आ गए ईमान के साहब ।
नीयत हो अगर साफ़ तो बरक़त नहीं मिलती ।।
इनकार की हस्ती को यूँ समझा तो करें आप ।
हर बात पे गर हाँ हो तो इज़्ज़त नहीं मिलती ।।
उड़ जाती हैं क्यूँ तितलियां उस गुल के चमन से ।
जिस फूल के आगोश में निकहत नहीं मिलती ।।
हातिम - दाता
इशरत - भोग विलास
आगोश - गोद
निकहत - खुशबू
-- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
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