2122 2122 2122 212
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बिक रही इंसानियत जब, आप सौदा कीजिए ।
कौन कितने में बिका है ये न चर्चा कीजिये ।।
स्याह शब का भी गुज़रना तय है यारों सुब्ह तक ।
घर जलाकर शह्र में अब मत उजाला कीजिये ।।
कौन समझे दर्द अब मजदूर का इस देश में ।
हर सियासत दाँ का बस फ़रमान देखा कीजिये ।।
कौन होगा साथ अपने मुफ़लिसी के दौर में ।
दोस्तों की दोस्ती को आजमाया कीजिये ।।
कामयाबी के लिए कुछ सब्र तो रखिये ज़नाब ।
इस तरह मत आसमां सर पर उठाया कीजिये ।।
मुद्दतों से देखिये है मुन्तज़िर दिल का मकां ।
आप इस घर में भी थोड़ा आया जाया कीजिए ।।
जब गमों के बोझ से दबने लगी है जिंदगी ।
रफ़्ता रफ़्ता फ़िक्र भी अपनी उड़ाया कीजिये ।।
आँखें करती हैं बयां हर दर्द को महफ़िल में जब ।
बारहा इन आंसुओं को मत छुपाया कीजिये ।।
-डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
स्याह शब का भी गुज़रना तय है यारों सुब्ह तक ।
घर जलाकर शह्र में अब मत उजाला कीजिये ।।
कौन समझे दर्द अब मजदूर का इस देश में ।
हर सियासत दाँ का बस फ़रमान देखा कीजिये ।।
कौन होगा साथ अपने मुफ़लिसी के दौर में ।
दोस्तों की दोस्ती को आजमाया कीजिये ।।
कामयाबी के लिए कुछ सब्र तो रखिये ज़नाब ।
इस तरह मत आसमां सर पर उठाया कीजिये ।।
मुद्दतों से देखिये है मुन्तज़िर दिल का मकां ।
आप इस घर में भी थोड़ा आया जाया कीजिए ।।
जब गमों के बोझ से दबने लगी है जिंदगी ।
रफ़्ता रफ़्ता फ़िक्र भी अपनी उड़ाया कीजिये ।।
आँखें करती हैं बयां हर दर्द को महफ़िल में जब ।
बारहा इन आंसुओं को मत छुपाया कीजिये ।।
-डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
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