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दुश्मनी कुछ यूँ निकाली जाएगी ।
बेसबब इज्ज़त उछाली जाएगी ।।
जब तलक जलते रहेंगे दिल यहाँ ।
आग उन पर और डाली जाएगी ।।
ख़ामुशी को तोड़ने के वास्ते ।
ये ग़ज़ल बनकर सवाली जाएगी ।।
तब रिहाई इश्क़ से मुमकिन कहाँ ।
दिल मे जब सूरत बसा ली जाएगी ।।
जिंदगी खुलकर बता अपनी रज़ा ।
तू नए सांचे में ढाली जाएगी ।।
जो है तेरा सब यहीं रह जायेगा ।
इस जमीं से रूह खाली जाएगी ।।
आ रहा है नेता कोई गांव में ।
एक नफ़रत और पाली जाएगी ।।
थालियां सब छिन गईं इस फेर में ।
मुझसे पहले उनकी थाली जाएगी ।।
-- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
वाह! वाह !
जवाब देंहटाएंजिंदगी खुलकर बता अपनी रज़ा ।
तू नए सांचे में ढाली जाएगी ।
अंदाज़-ए-बयां बहुत पसंद आया !
खूबसूरतग्ज़ल और अनमोल पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंजो है तेरा सब यहीं रह जायेगा ।
इस जमीं से रूह खाली जाएगी ।।
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय नवीन जी।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आपको।