है गुज़री जो दिल पे वही जानते हैं ।
वबा का असर आदमी जानते हैं ।।
जिन्हें जीस्त से कोई मतलब नहीं है ।
वो नादाँ तो बस बेरुख़ी जानते हैं ।।
उन्हें ही नवाज़ा है मौला ने अक्सर ।
जो मुफ़लिस की हर बेबसी जानते हैं ।।
खुदा काफिरों का भला ही करेगा ।
नहीं बात ये मज़हबी जानते हैं ।।
यहाँ जिंदगी थम रही रफ्ता रफ्ता ।
वहाँ तो सनम आशिक़ी जानते हैं ।।
नज़र से वही ज़ाम छलका न पाए ।
लबों की जो हर तिश्नगी जानते हैं ।।
यहां हुस्न वालों की है असलियत ये ।
ज़माने को वो मतलबी जानते हैं ।।
उन्हें अपने दिल की अमानत न सौपो ।
मुहब्बत को जो दिल्लगी जानते हैं ।
चले आइये कीजिये शब को रोशन ।
कहाँ रात हम चांदनी जानते हैं ।।
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