2122 2122 212
अब तो फैलेंगे वहाँ उन्माद सब ।
बन रहे मुखिया जहाँ जल्लाद सब ।।
क्यों बचें गुंजाइशें इस्लाह की ।
जब हुए ख़ुद ही यहाँ उस्ताद सब ।।
अब कलम पर हैं बहुत पाबंदियाँ ।
मत कहो इस देश मे आज़ाद सब ।।
लूट कर सारे वतन की रोटियाँ ।
चोर हैं परदेश में आबाद सब ।।
बेच देंगे वो मेरी पहचान भी ।
हो न जाए एक दिन बरबाद सब ।।
तैरती लाशों ने खोला सच का राज़ ।
कैसे कह दें वो मिली इमदाद सब ।।
उस सियासत से करें तौबा हुजूऱ ।
हैं जहाँ शैतान की औलाद सब ।।
--नवीन
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