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दिल्लगी सिर्फ़ इक बहाना था।
उनका मक़सद तो आज़माना था।।
मैं तो लूटा गया उन्हीं से फिर ।
जिनसे रिश्ता बहुत पुराना था ।।
तोड़ डाला उसी ने दिल देखो ।
जिसका दिल में ही आना जाना था ।।
हो गई कहकशाँ में जब साज़िश ।
इक सितारे को टूट जाना था ।।
मौत के बाद आये हैं जिनको ।
दम निकलने से पहले आना था ।।
चार कंधे नसीब भी न हुए ।
साथ जिसके खड़ा ज़माना था ।।
क्या ज़रूरत थी आपको मेरी ।
आसमा सर पे जब उठाना था ।।
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
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