ग़ज़ल
1222 1222 122
वहाँ सरकार जनता ढो रही है ।
जहाँ की नीति बस "ठोको" रही है ।।1
नज़र आई है तानाशाही ऐसे ।
मियाँ जमहूरियत ही रो रही है ।।2
वबा का दौर है, ऐ रब बचा ले।
कि अब इंसानियत भी खो रही है ।।3
बनाएं आपदा को आप अवसर ।
अदालत मुद्दतों से सो रही है ।।4
हम उनके वास्ते बस आंकड़े हैं ।
फ़क़त लाशों की गिनती हो रही है ।।5
न बच पाए कहीं अम्नो सुकूँ ये ।
सियासत ज़ह्र इतना बो रही है ।।6
करें उम्मीद क्या हम ज़िंदगी की ।
हमारी फ़िक्र कब उनको रही है ।।7
--नवीन
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