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हर तरफ़ यार दिलजले क्यूँ हैं ।
मुल्क के पस्त हौसले क्यूँ हैं ।।
कुछ तो साज़िश रची गयी होगी।
अम्न से इतने फ़ासले क्यूँ हैं ।।
बिक न जाए कहीं वतन मेरा ।
दुश्मनों के ये मरहले क्यूँ हैं ।।
कोई मजदूर से भी पूछे तो ।
पाँव में इतने आबले क्यूँ हैं ।।
दाम लगने तो दीजिये साहब ।
बेचने पर उतावले क्यूँ हैं ।।
कोई टैगोर बन नहीं सकता ।
फिर ये कायम ढकोसले क्यूँ हैं ।।
नींद इस बात से उड़ी उनकी ।
लोग मेरे मुकाबले क्यूँ हैं ।।
सबके चेहरे बुझे बुझे से जब ।
जश्न के झूठे चोंचले क्यूँ हैं।।
पूछती है सवाल जनता ये ।
बेसबब वो हमें छले क्यूँ हैं ।।
जब खरीदार ही नहीं आते ।
तो पकौड़े सभी तले क्यूँ हैं ।।
--- नवीन
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