2122 1122 1122 22
ऐ मुक़द्दर मेरे हालात को बहतर कर दे ।
चन्द लम्हात मुहब्बत के मयस्सर कर दे ।।
कैसे देखूं मैं. ख़ुदा मुल्क़ ये बिकता अपना ।
कुछ दिनों के ही लिए दिल मेरा पत्थर कर दे ।।
मीडिया चुप यहाँ धृतराष्ट्र बनी बैठी है ।
भारती मां पे कोई चीर निछावर कर दे ।।
इतनी खुदगर्ज़ सियासत है वतन की साहब ।
ये किसी दिन न हमें गांव में बेघर कर दे ।।
जुबाँ पे उसके भरोसा भी भला क्या कीजै ।
अपने वादे को पलट काम जो दीगर कर दे ।।
गर बचाना है तुझे अम्नो सुकूँ भारत का ।
शह्र को अपनी हिफाज़त में मुनव्वर कर दे ।।
घर से निकलो न मियाँ नफरतों की बारिश है ।
तेज बरसात तुम्हे भी न मुअत्तर कर दे ।।
अब उसे कौन बचाएगा ज़रा पूछो तो ।
ये ज़माना ही नज़र में जिसे कमतर कर दे ।।
तेरा तूफ़ान से हर हाल में लड़ना अच्छा ।
इससे पहले तेरी बस्ती वो समुंदर कर दे ।।
उसके खाते से यूँ मुफ़लिस को न भेजें चंदा ।
सारी दौलत जो तिज़ोरी के ही अंदर कर दे ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
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