212 1212 1212 1212
ख़ाक हो गयी खुशी, था आग का पता नहीं ।
ख़्वाब सारे जल गए, मगर धुआँ उठा नहीं ।।
पूछिये न हाले दिल यूँ बारहा मेरा सनम ।
ये हमारे दर्दोगम का सिलसिला नया नहीं ।।
इक नज़र से दिल तेरा वो लूट कर चला गया ।
क्या कहूँ अभी तलक हैं लोग क्यूँ खफ़ा नहीं ।।
रूबरू था हुस्न मेरे और दिल मचल गया ।
कैसे कह दूं आप से हुआ है हादिसा नहीं ।।
चाहतों का था असर या इश्क़ था नया नया ।।
क्यूँ सिहर गया बदन था जब तुझे छुआ नहीं ।
क्यूँ लिये थे मांग मुझसे मेरी धड़कनों को तुम ।
जब तुम्हें था दिल सभाँलने का तज्रिबा नहीं ।।
बेख़ुदी में क्या कहा न पूछिये हूजूर अब ।
लफ़्ज़ जो बहक गए उन्हीं का तर्जुमा नहीं ।।
मयकशी के बाद भी बनी रही यूँ तिश्नगी ।
रिंद जब बता गए अभी ये दिल भरा नहीं ।।
मौलिक अप्रकाशित
डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
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