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नज़र से अक्स वो हटता नहीं है ।
कहो मत हुस्न का जलवा नहीं है।।
गुले आरिज़ पे है काला सा तिल जो ।
सुकूँ के वास्ते अच्छा नहीं है ।।
मनाए दिल हमारा ईद कैसे ।
क़मर तो बाम पर उतरा नहीं है ।।
बहाने करके वादे से मुकरना ।
मुहब्बत का सही लहज़ा नहीं है ।।
मिला था जख़्म तेरे इश्क में जो ।
दवा के बाद भी भरता नहीं है ।।
ख़यालों में वो आ जाता है अक्सर ।
तसव्वुर पर कोई पहरा नहीं है ।।
करें हम क्या यकीं उस बेवफा पर ।
जुबाँ पे जो कभी ठहरा नहीं है ।।
ख़ुदा की हो न गर मर्ज़ी तो यारों ।
कोई पत्ता यहां हिलता नहीं है ।।
ऐ तूफाँ देख अपनी हैसियत तू ।
चमन आबाद है सहरा नहीं है ।।
सजा ए हिज़्र का है ख़ैर मक़दम ।
हमें महबूब से शिकवा नहीं है ।।
जो बीनाई में मंजर आ रहे हैं ।
उन्हीं पर आजकल चर्चा नहीं है ।।
-नवीन
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