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हैं मुन्तज़िर मेरे अहबाब देखने के लिए ।
जमीं पे उतरेगा महताब देखने के लिए ।।1
न जाने कैसा नशा है तुम्हारी सूरत में ।
सुना है रिन्द हैं बेताब देखने के लिए ।।2
तू अपनी तिश्नगी पे यार आज काबू रख ।
मिलेंगे और भी ज़हराब देखने के लिए ।।3
बहेंगे आप भी दरिया ए अश्क में इक दिन ।
अगर यूँ आएंगे सैलाब देखने के लिए ।।4
कुछ इस तरह का ख़ुदा ने नसीब बख़्शा है ।
हमें मिला ही नहीं ख़्वाब देखने के लिए ।।5
वहीं पे आग लगाई है इस ज़माने ने ।
चमन जहाँ भी था शादाब देखने के लिए ।।6
उसे है फ़िक्र कहाँ मेरी रूह की यारो ।
वो आ रहा मेरा असबाब देखने के लिए ।।7
मौलिक अप्रकाशित
-- नवीन मणि त्रिपाठी
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