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दाग़ अच्छे हैं न तुहमत अच्छी ।
चाहिए सब को मुहब्बत अच्छी ।।
दिल के बाज़ार में देखो साहब ।
हो रही रोज़ तिजारत अच्छी ।।
किसको फुरसत है खूबियां परखे ।
देखते लोग हैं सूरत अच्छी ।।
हर तरफ आसुओं का मंजर है ।
कैसे कह दूँ मैं हुकूमत अच्छी ।।
टुकड़े टुकड़े में मियाँ मरते हो ।
ऐसे जीने से बग़ावत अच्छी ।।
जो पलट जाएं हवा के रुख़ से ।
उनकी यारी से अदावत अच्छी ।।
लुट रहे लोग यहाँ अपनों से ।
आज़कल ग़ैरों की निसबत अच्छी ।।
जिसके आने से सुकूँ खो जाए ।
मत कहो यार वो दौलत अच्छी ।।
घर से निकला हूँ मैं तन्हा जानां ।
आप मिल जाएं तो किस्मत अच्छी ।।
--डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
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