ग़ज़ल
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जुल्म सहकर भी वो अनजान हुआ जाता है ।
बेसबब आदमी कुर्बान हुआ जाता है ।।
रोज़ पीता है जो चुपचाप गरीबों का लहू ।
शख़्स वह देखिए भगवान हुआ जाता है ।।
फ़िक्र कितनी है हमारी ये बताए मंज़र ।
सारा गुलशन यहाँ शमशान हुआ जाता है ।।
भूख के वास्ते शहरों की तरफ़ जब से गया ।
घर मेरे गांव का वीरान हुआ जाता है ।।
है अज़ब दौर ये मज़दूर का जीना मुश्किल ।
मांगता हक़ है तो शैतान हुआ जाता है ।।
शख्त पहरा वो लगा रक्खा है सच पर यारो ।
मीडिया फ़ख्र से दरबान हुआ जाता है ।।
ज़ख़्म खा करके भी खामोश रहो दुनिया मे ।
आजकल ऐसे ही इंसान हुआ जाता है।।
-डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
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